कई बार आपने रेलवे ट्रैक को पार भी किया होगा. क्या कभी ट्रैक पार करते वक्त आपने ये सोचा है कि क्यों उस पर इतने पत्थर पड़े होते हैं. कभी न कभी ये सवाल आपके दिमाग में ज़रूर आया होगा
दरअसल जब ट्रेन चलती है तो उससे ज़मीन और पटरियों में कंपन पैदा होता है. तेज़ धूप से पटरियां फैलती हैं और सर्दियों में सिकुड़ती हैं. मौसम के बदलाव से पटरी के आस-पास जंगली घास निकल आती है. ये गिट्टियां पटरी में लगे लकड़ी के प्लैंक को जकड़ कर रखती हैं और ये लड़की के प्लैंक पटरियों को मज़बूती से पकड़ता है. चूंकि ये गिट्टियां नुकीली होती हैं, लकड़ी के प्लैंक इन पर फिसलते भी नहीं.
ट्रेन का पूरा ज़ोर इन लकड़ी के प्लैंक पर आता है, जो आगे गिट्टियों पर चला जाता है. इससे कंपन, पटरियों का सिकुड़ना, ट्रेन का भार सब संभल जाते हैं. अक्सर पटरियां ज़मीन से थोड़ी ऊंचाई पर होती हैं, जिससे बारिश का पानी भी नहीं रुकता.
पटरी बिछाते वक्त पहले नींव में गिट्टियां डाली जाती हैं और बाद में ये लकड़ी के प्लैंक
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